Warnecha Wagh

भारत ने फिर दिखाया—पड़ोसी पहले, अमेरिका बाद में!

*ईरान से लेकर यूक्रेन तक – एक सीख जो बार-बार सामने आती है: संकट के समय असली सहारा पड़ोसी देश ही बनते हैं।* अमेरिका और पश्चिमी ताकतें अक्सर केवल अपने स्वार्थ को ध्यान में रखकर सहयोग करती हैं, लेकिन जब बात मुश्किल समय की आती है, तो वे अक्सर दूरी बना लेते हैं। ईरान-यूक्रेन युद्ध ने ऐसे कई भ्रम तोड़ दिए हैं।
हाल ही में जब शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) ने इजरायल के हमलों की निंदा की, तो भारत ने उस बयान से खुद को अलग रखा। लेकिन ब्रिक्स (BRICS) की ओर से जारी संयुक्त बयान में भारत ने स्पष्ट रूप से ईरान पर हुए सैन्य हमलों को लेकर चिंता जताई। यह बदलाव उस समय हुआ जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह SCO की बैठक के लिए चीन में थे। भारत का यह रुख यह दिखाता है कि उसके लिए क्षेत्रीय साझेदार, पश्चिमी गुटों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को प्राथमिकता दी — यानी ‘पड़ोसी पहले’। इसका प्रभाव स्पष्ट है: श्रीलंका जब दिवालिया होने के कगार पर था, भारत ने खुलकर उसकी मदद की। मालदीव को आर्थिक संकट से उबारा और भूटान को हमेशा छोटे भाई की तरह समर्थन दिया। आज ये देश भारत के बिना अपनी विदेश नीति की कल्पना नहीं कर सकते।
हालांकि, चीन की चालबाज़ियाँ, बांग्लादेश की अनिश्चितताएँ और पाकिस्तान की दुश्मनी इस नीति के सामने लगातार चुनौती बनी हुई हैं। भारत ने कई बार दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, लेकिन कुछ पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में सुधार नहीं हो सका। फिर भी, अन्य क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ भारत के रिश्ते लगातार मजबूत हुए हैं।
*विशेषज्ञों की राय:*
🔹 *”अमेरिका का समर्थन स्थायी सिद्धांतों पर नहीं, बल्कि परिस्थितियों पर आधारित होता है। यूक्रेन इसका ज्वलंत उदाहरण है।”* — *प्रो. शांतनु मुखर्जी*, अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ
🔹 *”जब असली संकट आता है, तब न अमेरिका आपकी सीमाओं की रक्षा करता है, न फ्रांस। उस समय नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देश ही आपके कूटनीतिक सहयोगी बनते हैं।”* — *ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) आर. पी. सिंह*, रक्षा और कूटनीतिक विश्लेषक
*ईरान को प्राथमिकता क्यों?*
भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद ईरान को तवज्जो दी है क्योंकि ईरान न केवल एक पुराना और भरोसेमंद सहयोगी है, बल्कि रणनीतिक और ऊर्जा-सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके उलट, अमेरिका ने समय-समय पर अपने हितों के अनुसार मित्र बदले हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा पाकिस्तान के साथ फिर से संबंध सुधारने की कोशिश इसका उदाहरण है।
भारत अच्छी तरह समझता है कि अमेरिकी विदेश नीति अक्सर अल्पकालिक रणनीतियों पर केंद्रित रहती है और वह अपने पुराने सहयोगियों को संकट में छोड़ने से भी नहीं हिचकता — अफगानिस्तान से अचानक सैन्य वापसी इसका ताजा उदाहरण है। वहीं भारत की नीति स्पष्ट और स्थिर रही है — वह जिसे मित्र मानता है, उसके साथ हर परिस्थिति में खड़ा रहता है।